रधानमंत्री की अध्यक्षता में बुधवार को हुई कैबिनेट बैठक में उस अध्यादेश को मंजूरी दी गयी जो तीन तलाक को अपराध घोषित करता है। सुप्रीमकोर्ट द्वारा तीन तलाक को अपराध घोषित करने और सर कार से कानून बनाने के आग्रह के बाद यह विधेयक संसद में लाया गया था। लोकसभा ने तो ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक 2017’ पारित कर दिया था, लेकिन राज्यसभा में राजग का बहुमत न होने से विधेयक अटक गया। कांग्रेस की मान-मनौव्वल के प्रयास बेकार गये। विपक्ष इसके प्रावधानों में कुछ संशोधन चाहता था। जाहिरा तौर पर मुद्दे के राजनीतिक निहितार्थ भी हैं और आगामी आम चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक दांव-पेचों से इनकार भी नहीं किया जा सकता। अध्यादेश के बाद जहां सरकार ने कांग्रेस को निशाने पर लिया तो कांग्रेस ने भी इसे राजनीतिक मुद्दा बनाने का आरोप लगाया। भाजपा कहती रही है कि आजादी के सत्तर साल बाद और संविधान में मौलिक अधिकारों का जिक्र होने के बाद भी मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक दिया जाना विडंबना ही है। कई मुस्लि म देशों में तीन तलाक पर रोक है लेकिन धर्मनिरपेक्ष भारत में राजनीतिक कारणों से इस पर रोक नहीं लगी।