ज़ाहिर है, मालदीव की इस यात्रा से भारत अंतरराष्ट्रीय समुदाय को एक संदेश भी देना चाहता है कि उसके अपने क़रीबी पड़ोसी उसके 'पाले में हैं.'
प्रधानमंत्री मोदी के ही नेतृत्व वाली पिछली सरकार के दौरान नेपाल से सम्बन्धों में दरार आ गई थी जब 'आर्थिक ब्लॉकेड' का मसला हुआ था और उसके कुछ साल बाद नेपाल ने भारतीय नोटों पर बैन लगा दिया था.
पाकिस्तान और चीन के साथ भी सम्बन्धों में कोई सुधार नहीं दिखा है.
बांग्लादेश में शेख़ हसीना सरकार से मौजूदा भारतीय सरकार के अच्छे रिश्ते रहे हैं लेकिन इस बीच वहाँ के विपक्ष ने भारत पर "बांग्लादेश को दबा कर रखने' का आरोप लगाया है.
अब एक नज़र दौड़ाइए उन घोषणाओं/समझौतों पर जो प्रधानमंत्री मोदी के मालदीव आने पर हुईं.
मालदीव डिफ़ेंस फ़ोर्सेज़ के कंपोज़िट ट्रेनिंग सेंटर और तटीय निगरानी प्रणाली में मदद की पहल, क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण, विभिन्न द्वीपों पर पानी और सफ़ाई की व्यवस्था, छोटे और लघु उद्योगों के लिए वित्त व्यवस्था, बंदरगाहों का विकास, कांफ्रेंस और कम्युनिटी सेंटर का निर्माण, आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं, स्टूडेंट्स के लिए फ़ेरी की सुविधा प्रमुख हैं.
साथ ही मालदीव में जामा मस्जिद के निर्माण कार्य में मदद की घोषणा.
कोच्ची और माले के बीच जिस पैसेंजर फ़ेरी को चालू करने पर सहमति हुई है वो दरअसल 2011 से ठंडे बस्ते में पड़ी हुई थी. ये वो साल था जब पिछली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) ने मालदीव की आधिकारिक यात्रा की थी.
मालदीव के राष्ट्रपति सोलिह जब पिछले वर्ष भारत आए थे तब क़रीब डेढ़ अरब डॉलर की वित्तीय मदद की घोषणा (जिसमें एक बड़ी रक़म मूलभूत ढाँचों के विकास के लिए उधार पर भी दी जाएगी) हो चुकी थी.
साफ़ है कि इस यात्रा में किसी बड़े निवेश पर समझौता नहीं हुआ, न ही इस पर कोई बात की गई.
मालदीव में कुछ व्यवसायियों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी के डेलीगेशन में भारत के कुछ बड़े कॉरपोरेट समूह भी आएँगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
वजह शायद यही है कि मालदीव की पिछली अब्दुल्ला यामीन सरकार और तब माले हवाई अड्डे में निर्माण कार्य में लगी भारतीय जीएमआर कम्पनी में तनातनी हो चुकी है और कम्पनी पर करोड़ों रुपये का हर्जाना लगा दिया था.
फ़िलहाल मामला सुलझ गया है लेकिन इसके बाद से भारतीय कारोबारियों ने मालदीव में फूँक-फूँक कर क़दम रखने शुरू कर दिए हैं.
राजधानी में मुलाक़ात मालदीव मूल के अब्दुल्ला शाह से भी हुई जिन्हें लगता है पिछले कुछ वर्षों में जो हुआ उसे बदलने में समय लगेगा.
उन्होंने कहा, "मोदी आए ये तो अच्छी बात है, लेकिन क्या देकर गए इसे समझने में समय लगेगा. भारत और मालदीव के बीच सम्बंध ऐतिहासिक हैं इसमें कोई शक नहीं. आगे देखते हैं."
मालदीव के वित्त मंत्रालय के एक अफ़सर ने गोपनीयता बनाए रखने की शर्त पर बताया, "पिछले छह सालों में मालदीव में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों ने बिज़नेस में पैर जमा लिए हैं. चीन की तो बात छोड़िए, सिंगापुर, थाईलैंड और मलेशिया की कंपनिया यहाँ निर्माण कार्य और पर्यटन के व्यवसाय में अपना सिक्का जमा चुकी हैं. भारत की तरफ़ से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ सिवाय टाटा और स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया वग़ैरह के."
इधर इस अहम यात्रा के बाद बीबीसी हिंदी से हुई एक ख़ास बातचीत में संसद के स्पीकर और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने इस बात से इनकार किया कि जब वे सत्ता में रहते हैं तो भारत की तरफ़ अनायास ही मुख़ातिब रहते हैं.
उन्होंने कहा, "भारत-मालदीव के सम्बंध आज के तो हैं नहीं. और भारत ने कभी भी मालदीव से आर्थिक फ़ायदा उठाने की नहीं सोची, इसलिए हम लोग भारत से दोस्ती में ख़ुशी महसूस करते हैं."
लेकिन इस सवाल का जवाब स्पीकर नशीद थोड़ा टाल सा गए कि, "क्या इस बात से निराशा नहीं हुई कि प्रधानमंत्री के साथ भारतीय उद्योगपतियों की तरफ़ से कोई नहीं आया निवेश वग़ैरह के लिए?"
मोहम्मद नशीद ने कहा, "देखिए ये मालदीव के लोगों से, सभी राजनीतिक दलों से मिलने की यात्रा थी न कि व्यवसायिक. रही बात आर्थिक सहयोग की तो ऐसा नहीं है कि मालदीव आर्थिक मदद या क़र्ज़ों से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ़ भारत की तरफ़ ही देखता है."
माले में प्रधानमंत्री के आगमन पर कुछ लोगों में ये भी सुगबगाहट चल रही थी कि, "जब हवाई अड्डा मात्र पंद्रह मिनट की दूरी पर है तो राष्ट्रपति सोलिह पीएम मोदी को रिसीव करने क्यों नहीं गए."
मालदीव के कुछ जानकार इस ओर भी इशारा करते हैं कि मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह, "बेहद मँझे हुए, संजीदा राजनेता हैं और उनमें और पूर्व राष्ट्रपति और फ़िलहाल मालदीव की मजलिस (संसद) में स्पीकर मोहम्मद नशीद में, यही एक छोटा लेकिन बहुत ख़ास फ़र्क़ है कि नशीद खुल कर भारत-समर्थन करते हैं और सोलिह कूटनीतिक तरह से."
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी डेढ़ दिन की मालदीव यात्रा के दौरान पूर्व राष्ट्रपतियों अब्दुल गयूम और मोहम्मद नशीद से मुलाक़ात की थी. नशीद से मुलाक़ात पर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए मोदी ने ट्वीट भी किया था.
प्रधानमंत्री मोदी के ही नेतृत्व वाली पिछली सरकार के दौरान नेपाल से सम्बन्धों में दरार आ गई थी जब 'आर्थिक ब्लॉकेड' का मसला हुआ था और उसके कुछ साल बाद नेपाल ने भारतीय नोटों पर बैन लगा दिया था.
पाकिस्तान और चीन के साथ भी सम्बन्धों में कोई सुधार नहीं दिखा है.
बांग्लादेश में शेख़ हसीना सरकार से मौजूदा भारतीय सरकार के अच्छे रिश्ते रहे हैं लेकिन इस बीच वहाँ के विपक्ष ने भारत पर "बांग्लादेश को दबा कर रखने' का आरोप लगाया है.
अब एक नज़र दौड़ाइए उन घोषणाओं/समझौतों पर जो प्रधानमंत्री मोदी के मालदीव आने पर हुईं.
मालदीव डिफ़ेंस फ़ोर्सेज़ के कंपोज़िट ट्रेनिंग सेंटर और तटीय निगरानी प्रणाली में मदद की पहल, क्रिकेट स्टेडियम का निर्माण, विभिन्न द्वीपों पर पानी और सफ़ाई की व्यवस्था, छोटे और लघु उद्योगों के लिए वित्त व्यवस्था, बंदरगाहों का विकास, कांफ्रेंस और कम्युनिटी सेंटर का निर्माण, आपातकालीन चिकित्सा सेवाएं, स्टूडेंट्स के लिए फ़ेरी की सुविधा प्रमुख हैं.
साथ ही मालदीव में जामा मस्जिद के निर्माण कार्य में मदद की घोषणा.
कोच्ची और माले के बीच जिस पैसेंजर फ़ेरी को चालू करने पर सहमति हुई है वो दरअसल 2011 से ठंडे बस्ते में पड़ी हुई थी. ये वो साल था जब पिछली बार किसी भारतीय प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) ने मालदीव की आधिकारिक यात्रा की थी.
मालदीव के राष्ट्रपति सोलिह जब पिछले वर्ष भारत आए थे तब क़रीब डेढ़ अरब डॉलर की वित्तीय मदद की घोषणा (जिसमें एक बड़ी रक़म मूलभूत ढाँचों के विकास के लिए उधार पर भी दी जाएगी) हो चुकी थी.
साफ़ है कि इस यात्रा में किसी बड़े निवेश पर समझौता नहीं हुआ, न ही इस पर कोई बात की गई.
मालदीव में कुछ व्यवसायियों को उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री मोदी के डेलीगेशन में भारत के कुछ बड़े कॉरपोरेट समूह भी आएँगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
वजह शायद यही है कि मालदीव की पिछली अब्दुल्ला यामीन सरकार और तब माले हवाई अड्डे में निर्माण कार्य में लगी भारतीय जीएमआर कम्पनी में तनातनी हो चुकी है और कम्पनी पर करोड़ों रुपये का हर्जाना लगा दिया था.
फ़िलहाल मामला सुलझ गया है लेकिन इसके बाद से भारतीय कारोबारियों ने मालदीव में फूँक-फूँक कर क़दम रखने शुरू कर दिए हैं.
राजधानी में मुलाक़ात मालदीव मूल के अब्दुल्ला शाह से भी हुई जिन्हें लगता है पिछले कुछ वर्षों में जो हुआ उसे बदलने में समय लगेगा.
उन्होंने कहा, "मोदी आए ये तो अच्छी बात है, लेकिन क्या देकर गए इसे समझने में समय लगेगा. भारत और मालदीव के बीच सम्बंध ऐतिहासिक हैं इसमें कोई शक नहीं. आगे देखते हैं."
मालदीव के वित्त मंत्रालय के एक अफ़सर ने गोपनीयता बनाए रखने की शर्त पर बताया, "पिछले छह सालों में मालदीव में दक्षिण पूर्व एशिया के देशों ने बिज़नेस में पैर जमा लिए हैं. चीन की तो बात छोड़िए, सिंगापुर, थाईलैंड और मलेशिया की कंपनिया यहाँ निर्माण कार्य और पर्यटन के व्यवसाय में अपना सिक्का जमा चुकी हैं. भारत की तरफ़ से ऐसा कुछ भी नहीं हुआ सिवाय टाटा और स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया वग़ैरह के."
इधर इस अहम यात्रा के बाद बीबीसी हिंदी से हुई एक ख़ास बातचीत में संसद के स्पीकर और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने इस बात से इनकार किया कि जब वे सत्ता में रहते हैं तो भारत की तरफ़ अनायास ही मुख़ातिब रहते हैं.
उन्होंने कहा, "भारत-मालदीव के सम्बंध आज के तो हैं नहीं. और भारत ने कभी भी मालदीव से आर्थिक फ़ायदा उठाने की नहीं सोची, इसलिए हम लोग भारत से दोस्ती में ख़ुशी महसूस करते हैं."
लेकिन इस सवाल का जवाब स्पीकर नशीद थोड़ा टाल सा गए कि, "क्या इस बात से निराशा नहीं हुई कि प्रधानमंत्री के साथ भारतीय उद्योगपतियों की तरफ़ से कोई नहीं आया निवेश वग़ैरह के लिए?"
मोहम्मद नशीद ने कहा, "देखिए ये मालदीव के लोगों से, सभी राजनीतिक दलों से मिलने की यात्रा थी न कि व्यवसायिक. रही बात आर्थिक सहयोग की तो ऐसा नहीं है कि मालदीव आर्थिक मदद या क़र्ज़ों से छुटकारा पाने के लिए सिर्फ़ भारत की तरफ़ ही देखता है."
माले में प्रधानमंत्री के आगमन पर कुछ लोगों में ये भी सुगबगाहट चल रही थी कि, "जब हवाई अड्डा मात्र पंद्रह मिनट की दूरी पर है तो राष्ट्रपति सोलिह पीएम मोदी को रिसीव करने क्यों नहीं गए."
मालदीव के कुछ जानकार इस ओर भी इशारा करते हैं कि मौजूदा राष्ट्रपति इब्राहिम सोलिह, "बेहद मँझे हुए, संजीदा राजनेता हैं और उनमें और पूर्व राष्ट्रपति और फ़िलहाल मालदीव की मजलिस (संसद) में स्पीकर मोहम्मद नशीद में, यही एक छोटा लेकिन बहुत ख़ास फ़र्क़ है कि नशीद खुल कर भारत-समर्थन करते हैं और सोलिह कूटनीतिक तरह से."
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी डेढ़ दिन की मालदीव यात्रा के दौरान पूर्व राष्ट्रपतियों अब्दुल गयूम और मोहम्मद नशीद से मुलाक़ात की थी. नशीद से मुलाक़ात पर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए मोदी ने ट्वीट भी किया था.
Comments
Post a Comment